Anant Chaturdashi : अनंत चतुर्दशी जैन और हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला श्री गणेश विसर्जन त्योहार है। अनंत चतुर्दशी दस दिवसीय गणेश उत्सव यानी की गणेश चतुर्थी का अंतिम दिन है। इसे गणेश चौदस भी कहा जाता है, इस दिन भक्त गणेश विसर्जन द्वारा भगवान श्री गणेश को विदा करते हैं।
साथ ही साथ लोग भगवान विष्णु के अनंत रूप में उनकी पूजा करने का भी बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस त्योहार के पीछे की कहानी क्या है और यह कैसे अस्तित्व में आया आज के लेख में इसे समझने का प्रयास करेंगे तो आइए दोस्तों जानते है आज के लेख Anant Chaturdashi ki Vrat Katha के बारे में ?
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Anant Chaturdashi ki Vrat Katha : अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है एक ऋषि हुआ करते थे उनका सुमंत था वहीं उनकी धर्म पत्नी का नाम दीक्षा था। कुछ समय के बाद ऋषि की पत्नी ने एक सुंदर पुत्री को जन्म दिया। जिसका नाम रखा गया सुशीला, लेकिन बहुल जल्द ही सुशीला के सिर से उसकी मां का साया उठ गया।
अब ऋषि सुमंत को अपनी पुत्री के लालन-पालन की चिंता होने लगी तो इसके कारण उसने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया। और कर्कशा नाम की महिला के ऋषि का दूसरा विवाह हुआ।
कर्कशा बड़े ही कठोरहृदय वाली महिला थी। लेकिन जैसे तैसे समय गुजरता गया ऋषि कि पुत्री सुशीला भी बड़ी होने लगी और अब ऋषि सुमंत को अपनी पुत्री के विवाह की चिंता सताए जा रही थी। काफी प्रयासों के बाद सुशीला का कौडिन्य नाम के एक ऋषि से विवाह संपन्न हुआ। लेकिन यहां भी सुशीला को निर्धनता का ही सामना करना पड़ा। उन्हें जंगलों में भटकना पड़ा।
एक दिन सुशीला ने देखा कि कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं और हाथ में अनंत रक्षासूत्र भी बांध रहे हैं। सुशीला ने उनसे अनंत भगवान के व्रत के महत्व को जानकर पूजा का विधि विधान पूछा और उसका पालन करते हुए अनंत रक्षासूत्र अपनी कलाई पर भी बांध लिया।
देखते ही देखते उनके अच्छे दिन आने लगे। कौण्डिन्य ऋषि में बड़ा अंहकार आ गया कि ये सब उसने अपनी मेहनत से कमाया है ये काफी हद तक सही भी था क्योंकि उन्होंने प्रयास भी बहुत किये थे।
अगले साल Anant Chaturdashi पर जब सुशीला अनंत भगवान का शुक्रिया कर उनकी पूजा आराधना कर अनंत रक्षासूत्र को बांध कर घर लौटी तो कौण्डिन्य ऋषि ने उसके हाथ में बंधा वह अनंत धागा देखा और उसके बारे में पूछा।
सुशीला ने प्रसन्नता पूर्वक बताया कि ये अनंत भगवान की आराधना कर रक्षासूत्र बंधवाया है इसके बाद ही हमारे जीवन में खुशहाली आई है। इस बात पर कौडिन्य खुद को अपमानित सा महसूस करने लगा उसका लगने लगा कि उसकी मेहनत का श्रेय सुशीला अपनी पूजा- पाठ को दे रही है।
कौंडिन्य ने इन सभी को अंधविश्वास माना और सुशीला की कलाई पर बंधे उस धागे को निकलवा दिया। इससे अनंत भगवान रूष्ट हो गये और कुछ दिनों बाद, उनकी सारी संपत्ति व खुशी गायब हो गई और देखते ही देखते वे अर्श से फर्श पर आ गए। उनका जीवन पहले के जैसे हो गया।
इससे हताश होकर उसने जंगल में एक पेड़ में लटककर आत्महत्या करने का फैसला किया। तभी एक ब्राह्मण ने उन्हें बचा लिया और उसे पास की एक गुफा में ले गया।
कौंडिन्य ने अपने अनंत अवतार में कई पुरुषों और महिलाओं को भगवान विष्णु की पूजा करते हुए देखा। जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि जिस ब्राह्मण ने उन्हें मृत्यु के कगार से बचाया, वह कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु थे।
कौंडिल्य अपने पैरों पर गिर गया, अपनी गलती कबूल कर ली, और उसे सुधारने का एक और मौका मांगा। तब लगातार 14 वर्षों तक उन्होंने अनंत चतुर्दशी का उपवास रखा उसके पश्चात भगवान प्रसन्न हुए और कौडिन्य व सुशीला फिर से सुखपूर्वक जीवन जीने लगे।
Anant Chaturdashi: अनंत चतुर्दशी का महत्व
संयोग से अनंत चतुर्दशी और गणेश विसर्जन एक ही दिन पड़ते हैं। गणेश विसर्जन गणेश चतुर्थी के 10 दिवसीय लंबे त्योहार का बाद आता है। भगवान विष्णु की पूजा उनके अनंत रूप में की जाती है, जो कि लेटने की मुद्रा या पूर्ण आध्यात्मिक विश्राम की अवस्था है।
इस दिन, लोग अपने सभी पापों, कार्यों और दुखों से छुटकारा पाने के लिए अनंत व्रत या अंतहीन उपवास करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर या दूध के सागर में निवास करते हैं।
सिंदूर के चूर्ण से चौदह लंबे तिलक बनाए जाते हैं और इन तिलकों पर चौदह चौदह की पूरियां और मालपुए रखे जाते हैं इसके साथ, पंचामृत, गुड़, दूध, दही, शहद व घी का मिश्रण भी लेटे हुए देवता को चढ़ाया जाता है।
एक ककड़ी के चारों ओर एक लाल धागा चौदह बार बांधा जाता है, यह भगवान अनंत की मूर्ति का प्रतीक है।
पुरुष और महिला दोनों इस लाल धागे को अपनी कलाई पर बांधते हैं, और यह उन्हें अपने आस पास की सभी नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित रखता है। जो लोग एक बार इस त्योहार के लिए उपवास शुरू कर देते हैं उन्हें अगले चौदह वर्षों तक हर साल इस व्रत को जारी रखना होता है।
अनंत चतुर्दशी हमें याद दिलाती है कि जीवन के बदलते सुख दुख के मिजाज को हमें परेशान न होने दें। यह उन मूलभूत सिद्धांतों में से एक है जो शास्त्र सद्भाव और शांति से रहने के लिए सुझाते हैं।
परंपरा का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व भगवान विष्णु हैं, जिन्हें सांपों यानी की शेषनाग के बिस्तर पर शांति से सोते हुए दिखाया गया है। आज का दिन अच्छी और बुरी दोनों परिस्थितियों में संतुलित रहने पर काम शुरू करने का है। जीवन में शांति बनाए रखने वाला ही अपनी दिव्यता का एहसास कर सकता है।
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यह भी जानिए: Anant Chaturdashi के बारे में रोचक तथ्य
• अनंत चतुर्दशी एक जैन त्योहार है, जो भगवान विष्णु की पूजा से जुड़ा है, जो अनंत नाग पर विराजमान हैं और उन्हें भगवान अनंत के नाम से भी जाना जाता है।
• अनंत चतुर्दशी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आता है, यह गणेश चतुर्थी के उत्सव का अंतिम दिन है। इस दिन, भगवान गणेश की मूर्तियों को विसर्जित किया जाता है क्योंकि भक्त अगले वर्ष तक भगवान श्री गणेश को विदाई देते हैं।
• इस विशेष दिन पर भक्त बड़ी संख्या में मंदिरों में पूजा करने व भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्रित होते हैं।
• भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए अनंत चतुर्दशी के अवसर पर विस्तृत अनुष्ठान और पूजा की जाती है।
• यह भगवान विष्णु और भगवान गणेश का आशीर्वाद लेने के लिए एक बहुत ही खास दिन है, क्योंकि यह गणेश चतुर्थी उत्सव का अंतिम दिन है।
• अनंत चतुर्दशी इस साल 2023 में गुरुवार 28 सितंबर को है, जो भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को है।