Karva Chauth ki Kahani – करवा चौथ की कहानी (वीरवती की कहानी)

Karva Chauth Ki Kahani – करवा चौथ की कहानी :- भारत देश में ऐसी अनेकों परंपराएं प्रचलित जो की हिंदू धर्म व मान्यताओं को दर्शाती है, इन्हीं में से एक त्योंहार है करवा चौथ का जो की विवाहित ओर अविवाहित महिलाओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योंहार है। करवा चौथ का त्योंहार निर्जल व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 2023 में ये त्योंहार बुधवार 1 नवंबर को मनाया जायेगा।

हिंदू पंचांग अनुसार करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद चौथे दिन मनाया जाता है। यह पर्व पारंपरिक रूप से भारत के उत्तर के क्षेत्र जैसे की पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश व मध्य प्रदेश राज्यों में मनाया जाता है।

करवा चौथ को आंध्र प्रदेश में ‘अतला तड्डे’ के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के संबंध में काफ़ी सारी कहानियां प्रचलित है तो आइए दोस्तो आज के इस लेख में जानने का प्रयास करते है करवा चौथ के पर्व के बारे में विस्तार से…!

Karva Chauth Ki Kahani
Karva Chauth Ki Kahani In Hindi

Karva Chauth का अर्थ और इतिहास

करवा चौथ का अर्थ :- ‘करवा’ शब्द का अर्थ होता है ‘बर्तन’, पानी लाने व ले जाने वाला एक मिट्टी का बर्तन वहीं ‘चौथ’ का अर्थ होता हैं ‘चौथा’ है क्योंकि यह दिन कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है।

करवा चौथ का यह पर पर्व सबसे पहले भारत के उत्तरी व पश्चिमी भाग में शुरू हुआ था। वही इस त्योहार की उत्पत्ति के बारे में कई प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं जो की कुछ इस प्रकार है..!

पहली मान्यता है की जब देवताओं को राक्षसों द्वारा पराजित किया गया था तब उन्होंने भगवान ब्रह्मा से सहायता व सुरक्षा मांगी। तब भगवान ब्रह्मा ने राक्षसों को हराने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने पतियों की भलाई के लिए व्रत रखने का सुज्ञाव दिया।

और कार्तिक मास की चतुर्थी को सभी देवियों ने व्रत रखा था और देवताओं ने राक्षसों को हरा दिया था तभी से Karva Chauth Ka Parv मनाया जाता है।

दूसरी मान्यता ये भी की महाभारत में एक बार जब अर्जुन देवताओं को प्रसन्न करने व दैवीय हथियार पाने के लिए कठोर तपस्या करने के लिए चले गए थे।

तब द्रौपदी चिंतित हो गई व भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह अपने पति की मदद करने के लिए क्या कर सकती है। तब फिर भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अर्जुन की भलाई के लिए करवा चौथ का व्रत रखने का सुझाव दिया था।

ये भी माना जाता है की पहले सैन्य अभियान बहुत होते थे। ऐसे में सैनिक ज्यादातर समय घर से बाहर रहते थे। ऐसे में उनकी पत्नियां अपने पति की सुरक्षा के लिए करवा चौथ का व्रत रखने लगीं थी।

वर्तमान  में भी उत्तर भारत के भारतीय सैनिक अक्सर देश सेवा के लिए अपनी पत्नियों और बच्चों से दूर रहकर देश की सेवा करते है, वहीं उनकी पत्नियां अक्सर उनकी सुरक्षित वापसी के लिए व लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत करती है।

एक दिलचस्प बात ये भी है की करवा चौथ का त्योहार रबी की फसल चक्र की शुरुआत के साथ भी आता है। वहीं पहले गेहूँ के बीज को सुरक्षित रखने के लिए एक बड़े मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता था और इन बर्तनों को “करवा” भी कहा जाता था।

इस प्रकार, ये माना जाता था, कि करवा चौथ का ये उपवास उन क्षेत्रों में अच्छी फसल के लिए प्रार्थना के रूप में शुरू होता है, जहां गेहूं की फसल बड़े पैमाने पर ऊगाई जाती हैं।

Karva Chauth ka Vart : करवा चौथ व्रत कैसे करते है?

करवा चौथ के दिन, विवाहित महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं, वह सूर्योदय से पहले भोजन करती हैं, जिसे सरगी कहा जाता है, इस भोजन में आमतौर पर ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जिन्हें पकाने की आवश्यकता नहीं होती है, जैसे फल व मिठाईयां…

सरगी के बाद महिलाएं व्रत शुरू करती हैं, जो चंद्रोदय तक चलता है। उपवास को बहुत चुनौतीपूर्ण माना जाता है, कई महिलाओं के लिए पूरे दिन बिना भोजन के रहना मुश्किल होता है।

हालाँकि, इसे महिलाओं के लिए अपने पति के प्रति अपने प्यार और समर्पण को प्रदर्शित करने व अपने लंबे और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है।

शाम को महिलाएं अपने समुदाय या पड़ोस की अन्य महिलाओं के साथ पूजा करने के लिए इकट्ठा होती हैं। वे करवा चौथ से जुड़ी कहानियां और गीत सुनती हैं और अपने पति की सलामती और लंबी उम्र की कामना करती हैं। पूजा में आमतौर पर देवी गौरी को मिठाई और अन्य खाद्य पदार्थों का प्रसाद शामिल होता है, जिन्हें आदर्श पत्नी का प्रतिनिधित्व कहा जाता है।

पूजा के बाद महिलाएं चंद्रोदय का इंतजार करती हैं और छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और पूजा अर्चना करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि छलनी के माध्यम से चंद्रमा को देखकर, महिलाएं प्रतीकात्मक रूप से अपने पति के प्यार को “फ़िल्टर” कर रही है और केवल सबसे शुद्ध और सबसे सच्चा प्यार रखती है।

व्रत तभी तोड़ा जाता है जब पति चंद्रमा को देखता है और अपनी पत्नी को खाने के लिए देता है, इस प्रक्रिया को सिंदूर दान कहा जाता है, जो व्रत के पूरा होने का प्रतीक है।

करवा चौथ का त्यौहार उन युवा लड़कियों द्वारा भी मनाया जाता है जिन्होंने अभी तक शादी नहीं की है और अपने होने वाले पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

करवा चौथ भारत में महिलाओं के लिए एक विशेष महत्व रखता है। यह केवल उपवास और प्रार्थना के बारे में नहीं है, बल्कि पति और पत्नी के बीच प्रेम और भक्ति के बंधन को मनाने और सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन की कामना के बारे में भी है।

Karva Chauth Ki Kahani | करवा चौथ कहानी

Karva Chauth Ki Kahani :- एक पौराणिक कहानी अनुसार इस व्रत का टूटना अच्छा नहीं माना जाता। प्राचीन समय की बात है, एक शहर में एक ब्राह्मण रहता था। उसके 7 पुत्र व एक पुत्री थी। उसकी पुत्री का नाम वीरवती था। उसका विवाह इंद्रप्रस्थ वासी के एक ब्राह्मण के साथ हुआ था। वीरवती को उसके भाई और भाभियाँ द्वारा बहुत प्यार मिलता था।

जब शादी के पहले साल Karva Chauth Ke Vrat पर वह अपने मायके आई। तब नियमानुसार उसने अपनी भाभियों के साथ ‘Karva Chauth Ke Vrat’ रखा। वीरवती की भाभियों ने करवा चौथ का व्रत पूरी विधि-विधान से निर्जल रहकर कर रही थी, मगर वीरवती सारे दिन की भूख प्यास सहन न कर पाने से उदास सी थी।

Karva Chauth ki kahani
Karva Chauth ki kahani – करवा चौथ की कहानी

जब वीरवती के भाइयों इसके बारे में पता लगा कि उनकी बहन वीरवती का भूख प्यास से बुरा हाल हैं और अभी चांद कहीं नजर नहीं आ रहा था ऐसे में बिना चंद्र दर्शन एवं अर्घ्य दिए वीरवती कुछ ग्रहण नहीं कर सकती, भाइयों से वीरवती की हालत देखी नहीं गई। तब जब सांझ का धुंधलका चारों तरफ हो गया था।

तब उन भाइयों ने मिलकर योजना बनाई कि तब एक भाई ने दीया जलाया, दूसरे भाई ने छलनी लेकर उसे ढका और एक नकली चाँद दिखाकर अपनी बहन से कहने लगे कि चलो बहन चाँद उग आया है, अर्ध्य दे लो। ओर खाना खा लो।

तब बहन अपनी भाभियों से भी कहने लगी कि चलो अर्ध्य दें, तो भाभियाँ बोली की तुम्हारा चाँद उगा होगा, हमारा चाँद तो रात में उगेगा।

Karva Chauth ki kahani
Karva Chauth ki kahani – करवा चौथ की कहानी

और इस प्रकार वीरवती का करवा चौथ का व्रत को खंडित हो गया, जब वह भोजन ग्रहण करने लगीं। तो भोजन के पहले ही ग्रास में बाल आ गया, व भोजन के दूसरे ग्रास में कंकर आया और जब उसने भोजन के तीसरा ग्रास मुंह की ओर किया तो उसकी ससुराल से समाचार आ गया कि उसका पति बीमार है।

वीरवती को घर जल्दी भेजो। मां ने जब उसे ससुराल के लिए विदा किया तो कहा कि रास्ते में जो कोई भी मिले उसके पांव लगना ओर जो कोई सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद दे तो अपने पल्ले मे एक गाँठ लगाकर उसे कुछ रुपये देना।

लेकिन रास्ते में उसे जो भी मिला उसने यही आशीश दी कि तुम 7 भाइयों की बहन हो तुम्हारे भाई सुखी रहें और तुम उनका मुख हमेशा देखो। उसे सुहाग की आशीश किसी ने भी नहीं दी थी।

जब वह ससुराल पहुंची तो दरवाजे पर उसकी छोटी ननद खड़ी थी, जब वह उसके भी पांव लगी तो उसने कहा कि सदा सुहागन रहो, यह सुनकर उसने अपने पल्ले में गांठ बांधी और ननद को सोने का सिक्का दिया।

जब वह अंदर गई तो उसकी सास ने कहा कि उसका पति बहुत बीमारी है, वह जमीन पर लेटा है, तब वीरवती अपने पति के पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई।

Karva Chauth ki Kahani
Karva Chauth ki Kahani – करवा चौथ की कहानी

इस प्रकार से दिन रात पति की सेवा करते करते घर का सारा पैसा वीरगति के पति के इलाज में चला गया वह बीमारी भी ठीक तक नहीं हुई। घर का अन्न धन खाली होने लगा था, समय बीतता गया पूरा साल गुजरने को आया ऐसे में करवा चौथ का व्रत फिर से निकट आने लगा था।

तब एक दिन इंद्रलोक की इंद्राणी ने वीरवती को सपने में दर्शन दिए ओर उसके करवा चौथ के व्रत के खंडित होने का किस्सा सुनाया।

तब इंद्राणी ने कहा- वीरवती ! इस बार तू बारह माह तक यह व्रत पूरी विधि विधान से करना तो तुमारे पति अवश्य ठीक हो जायेंगे। समय बीतते बीतते मंगसिर मास की चौथ आ गई।

तब उसने कहा की हे चौथ माता मैंने इस पवित्र पर्था को बिगाड़ा है, अब इसे आप ही सुधारोगी, आपको मेरा सुहाग देना ही पड़ेगा तब उस चौथ माता ने बताया कि आगे पौष की चौथ आयेगी वह मेरे से बड़ी है।

उसे यह सब कहना। वही तुम्हारा सुहाग देगी। ऐसे करके माघ की चौथ आकर चली गई और फागुन की चौथ भी आकर चली गई चैत, बैशाख जेठ, आषाढ़ व सावन, भादों की सभी चौथ आ कर चली गई सबने यही कहा कि आगे वाली चौथ माता को यह सब कहना।

तब आसौज की चौथ आई तो उसने बताया कि तुम से कार्तिक की चौथ माता नाराज है, उसी ने तुम्हारा सुहाग लिया है, वही उसे वापस कर सकती है। वही आयेगी तब उसके पाँव पकड़कर आग्रह करना, यह कह कर वह भी चली गई।

जब कार्तिक माह की चौथ माता आई तो वह गुस्से में बोली – भाइयों की प्यारी करवा ले, दिन में चाँद उगानी करवा ले, व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले, यह सब सुनकर वीरवती चौथ माता के पाँव पकड़कर रोने लगी।

की हे चौथ माता ! मेरा सुहाग आपके हाथ में है- आप ही मुझे सुहागिन करें। तो माता बोली- पापिनी, हत्यारिनी अब मेरा पाँव पकड़कर क्यों बैठ गई ? तब वह बोली कि जो मुझसे भूल हुई उसे क्षमा करें, तब उसकी बिनती देख चौथ माता को दया आ गई और तब इस माता ने आंखो में से काजल, नाखूनों में से मेंहदी, मांग में से सिंदूर और टीका में से रोली निकाल कर वीरगति के पति पर छीटा दिया।

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तब इसके बाद उसका पति उठकर बैठ गया ओर बोला कि आज तो मैं बहुत सोया हु। तब वीरवती अपने पति से बोलती है की क्या सोये हो – मुझे तुम्हे बारह माह हो गये तब जाकर आपको फिर से उठा पाई हु। यह चमत्कार चौथ माता ने तुम्हारा जीवन बचाकर किया है।

वीरवती ने अपने पति को पूरी कहानी बताई, उसके बाद चौथ माता का पूजन किया व प्रसाद खाकर दोनों ने धूम धाम से माता का उत्सव मनाया। तब से सारे गांवों व शहरों में यह प्रसिद्धी होती गई कि सभी स्त्रियाँ चौथ माता का व्रत करें तो उसका सुहाग अटल रहेगा।

यही करवा चौथ के पर्व का महत्व है, चौथ माता सब को सुहागन रखे ! यही करवा चौथ के व्रत की पुरातन महिमा है।

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